चैैत्र पूर्णिमा 2021


सनातन हिंदू धर्म में तिथि मुहूर्त आदि का अत्यंत महत्त्व माना जाता है। चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि भारतीयों के नव वर्ष की प्रथम पूर्णिमा होती है। चैत्र पूर्णिमा कब पड़ रही है? इस दिन क्या करना चाहिए? क्या नहीं करना चाहिए? इसका क्या महत्व है? पूर्णिमा को किन उपायों से हम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं? आदि समस्त प्रश्नों के उत्तर के साथ में काशी से सतीश चंद्र पांडेय, "आचार्य कश्यप" उपस्थित हूं। आपका हमारे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है।

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                चैैत्र पूर्णिमा व्रत विधि माहात्म्य


चैत्र पूर्णिमा को स्नान दान कथा श्रवण आदि का बहुत ही महत्व हमारे शास्त्रों में बतलाया गया है। आइए सबसे पहले इस वर्ष 2021 में चैत्र पूर्णिमा का मुहूर्त जान लेतेहैं। 

दिनांक 27 अप्रैल 2021 को स्नान दान की पूर्णिमा  पड़ रही है। 

पूर्णिमा प्रारंभ 26 अप्रैल 2021 को सुबह 11:44 मिनट

अतः व्रत करने वाले 26 तारीख को भी व्रत कर सकते हैं।

पारण मुहर्त- 28 अप्रैल सुबह 7 बजे।


पूर्णिमा को सुबह स्नान ध्यान के बाद भगवान विष्णु की यथा विधि पूजा करनी चाहिए। इस दिन दक्षिण भारत में हनुमान जयंती भी मनाई जाती है तो हनुमान जी के निमित्त भी आप पूजा कर सकते हैं। व्रत पूर्वक व्रत नियम आचरण व्यवहार का ध्यान देते हुए भगवान विष्णु के निमित्त सत्यनारायण व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए। 

विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, पुरुष सूक्त का पाठ, श्रीमदभगवत गीता का पाठ आप ब्राह्मण के द्वारा करा सकते हैं, सुन सकते हैं। इसका इस दिन अत्यंत महत्वपूर्ण फल कहा गया है। चैत्र पूर्णिमा भारतीयों के नव वर्ष की प्रथम पूर्णिमा होती है। हनुमान जयंती भी इसी दिन पड़ती है जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। 

इस दिन तीर्थ स्नान, नदी स्नान, सरोवर स्नान का अत्यंत महत्व है। स्नान दान व्रत, हवन, जप आदि इस दिन करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है। 

सुबह स्नान के बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य अवश्य दें। भगवान सत्यनारायण की पूजा तथा कथा का श्रवण करें। रात्रि में चंद्रमा की पूजा तथा अर्घ्य प्रदान करें। इस दिन सतुआ का दान करना चाहिए। जल पूरित कुंभ का दान करना चाहिए। छाता ,जूता,पंखा आदि का दान करना चाहिए। ऐसा करने से समस्त ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने वृज में रास उत्सव किया था। दक्षिण भारत में आज ही के दिन हनुमान जी की जयंती मनाई जाती है तथा उत्सव मनाया जाता है।  


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। इस महा मंत्र के जप तथा इसी मंत्र से हवन करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है जिनकी जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हो, उन्हें यह व्रत करना चाहिए तथा चंद्रमा को रात्रि में अर्घ्य दान करना चाहिए।

 "ॐ सोम सोमाय नमः" इस मंत्र का अधिक से अधिक जप हवन करने से चंद्रमा की स्थिति सुदृढ़ होती है तथा मानसिक पीड़ा नष्ट हो जाती है। 

पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण को बुलाकर सेवा सत्कार पूर्वक भगवान सत्यनारायण का पूजन तथा कथा श्रवण करना चाहिए। गेहूं के आटे का चूर्ण , बताशा, केला, मेवा मिष्ठान, ऋतु फल, पंचामृत आदि भगवान को भोग लगाना चाहिए तथा केले के स्तंभ का मंडप बनाकर भगवान शालिग्राम की सत्यनारायण भगवान की षोडशोपचार पूजा करके कथा श्रवण करना चाहिए तथा रात्रि में मंगल गीत, गीता पाठ, रामायण पाठ, आदि करते हुए जागरण करना चाहिए। ऐसा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। दुख , पीड़ा, दरिद्रता ,रोग ,ब्याधि दूर हो जाते हैं। सुख, शांति ,आरोग्यता, ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। इसमें संशय नहीं है। इस दिन किसी भी प्रकार तामसिक विचार से बचना चाहिए। झूठ, चुगली, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार आदि का त्याग कर सात्विक भाव से गो, ब्राह्मण, गीता, गंगा में आस्था रखते हुए पूर्णिमा के व्रत अनुष्ठान को करना चाहिए। 


          पं0 सतीश चंद्र पाण्डेय "आचार्य कश्यप"

                       काशी, वाराणसी

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