लघु कृति
फिर वही करुण क्रन्दन !
हृदय को विदीर्ण करता
भयावह मुख मुद्रा
तपता जलता बदन चंदन ।
फिर वही करुण क्रन्दन ।।
क्रोधातिरेक से काँपता हुआ
हाथ अपने नब्ज़ अपनी नापता हुआ ,
थरथराती पुतलियाँ
नसोँ मेँ नील रक्तस्पंदन ।
फिर वही करुण क्रन्दन ।।
कश्यप
04-11-12
https://www.youtube.com/c/AcharyaKashyap
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