चैत्र शुक्ल पक्ष "कामदा एकादशी" व्रत कथा


चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाली कही गई है तथा ब्रह्म हत्या तुल्य पापों तथा पिशाचत्व को नाश करने वाली कही गई है। कामदा एकादशी का व्रत करने, इसकी कथा सुनने तथा पढ़ने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जी हां,  चैत्र शुक्ल पक्ष में पडने वाली कामदा एकादशी की कथा तथा महत्व को लेकर मैं काशी से सतीश चंद्र पांडेय "आचार्य कश्यप" उपस्थित हूं। आपका हमारेब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। यदि आप पहली बार आए हैं तो ब्लॉग को अवश्य  सब्सक्राइब कर लें तथा इसी तरह के प्रामाणिक व्रत त्योहार ज्योतिष कथा वास्तु आदि के संबंध में वीडियो देखने के लिए नोटिफिकेशन पाने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब अवश्य कर ले।


                             


    

चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह अत्यंत पवित्र तथा मनोवांछित फल को देने वाली है। कामना की पूर्ति करने के कारण ही इसका नाम कामदा है। यदि कोई पिशाच योनि में भी पड़ा हुआ है तो उसकी मुक्ति के लिए इस व्रत को उसके निमित्त करने के विधान को बतलाया गया है। आइए परम पवित्र कामदा एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करते हैं। 

ॐ नमोभगवते वासुदेवाय। 

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व कहिए। श्री कृष्ण भगवान बोले हे धर्मराज युधिष्ठिर। यही प्रश्न एक बार राजा दिलीप ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से भी किया था और उन्होंने जो समाधान बतलाया था वही मैं आपको भी बताता हूं। ध्यान पूर्वक सुनिए। 

प्राचीन काल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर अनेक ऐश्वर्य से युक्त पुंडरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सराएं किन्नर तथा गंधर्व सभी निवास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में वास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था। बहुत प्रेम था। यहां तक कि अलग अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे। बिना एक दूसरे के 1 मिनट भी नहीं रह सकते थे। एक समय पुंडरीक की सभा में अन्य गंधर्व के साथ ललित भी गान कर रहा था। गाना गा रहा था। गाते गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर थोड़ा भंग हो गया। स्व

र बिगड़ गया और स्वर भंग हो जाने के कारण। गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव को जानकर कर्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुंडरीक ने क्रोध पूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गा रहा है और अपनी स्त्री का ध्यान कर रहा है। अतः तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए हुए कर्मों के फल को भोगेगा।



                  कामदा एकादशी व्रत कथा वीीडियो



 पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य चंद्रमा की तरह जाज्वल्यमान तथा मुख से आग निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे और भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गई। कुल मिलाकर उसका शरीर 8 योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुख भोगने लगा। बहुत ही पीड़ा का सामना करने लगा। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह सारा समाचार ज्ञात हुआ तो उसे अत्यंत दुख हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न खोजने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे पीछे जाती है और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती घूमती विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई है। जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से ऋषि से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले हैं।  तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो। ललिता बोली है। मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको बहुत अधिक दुख है। उसके उद्धार का कोई उपाय हो तो बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हैं। गंधर्व कन्या अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है जिसका नाम कामदा एकादशी है। उसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत करके उसके पुण्य का फल अपने पति को दे दे तो वह शीघ्र ही राक्षस  योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी शांत हो जाएगा। उनके ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और  ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी। हे प्रभु मैंने जो यह व्रत किया है, इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाएं। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हो गया। फिर अनेक सुंदर वस्त्र आभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ बिहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्ग लोक में चले गए। वशिष्ठ मुनि कहने लगे। राजन इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा राक्षस आदि जो योनि है, वह भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई अन्य दूसरा व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने तथा सुनने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। बोलिए विष्णु भगवान की जय । 


          नमस्कार जय विश्वनाथ।


https://youtu.be/uProXV6CvoU

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