-स्वर्णपथ-

~~ स्वर्णपथ~~


आप दुःख, चिन्ता या निराशा के गहन अन्धकार मेँ भटकने के लिए नही जन्मे है, न आपको निर्जीव मुर्दे के समान निर्बलता, भय, चिन्ता, कमजोरी आदि दुष्ट विकारोँ का ही शिकार होना है। आपको अपवित्र विचार अस्त-व्यस्त नही कर सकते। जिन मार्गो से आपकी जीवन शक्ति का ह्रास होता है, वे आपके लिए नहीँ है।आप दैवी शक्तिसम्पन्न महत्वपूर्ण व्यक्ति है। समाज मेँ आपका प्रतिष्ठित पद है। आपके हिस्से मे सच्चा सुख आया है। आप एक सजीव दैवीय शक्तिसम्पन्न आत्मा है। आपका स्वरूप सत्-चित्-आनन्दमय है। आपके कण-कण मे दिव्य प्रवाह बह रहा है। आपको इस आनन्दमय जगत् में आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करना है। सदा विकसित पुष्प के समान खिले रहना है।

आप कभी निराश न हो, चट्टान की तरह कर्तव्य मार्ग पर दृढ़ रहेँ और आनन्दपूर्वक अग्रसर होते रहे। आनन्दमय विचारो मे डूबे रहने से आरोग्य, दीर्घजीवन और मानस शान्ति प्राप्त होती है, खिलख़िलाकर हँसने से रक्त संचालन की गति तीव्र होकर स्फूर्ति आती है, मानसिक रोग दूर होते हैँ। परमेश्वर स्वयं आनन्दमय हैँ । वे प्रसन्नता और स्फूर्ति का केन्द्र हैं।आनन्दमय स्वरूप को पहचानिए और अपने आनन्दमय वातावरण का विकास करते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर आरूढ़ हो जाइए। यही ""स्वर्णपथ"" है।  


सच्चिदानन्दरूपाय  विश्वोत्पत्यादि हेतवे।। 

तापत्रय विनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः।।।



Acharya Kashyap

पं0 सतीश चन्द्र पाण्डेय "काशी"वाराणसी

Comments

Popular posts from this blog

देवालय को श्रद्धा,भक्ति,उपासना का केंद्र बना रहने दें,पर्यटन स्थल न बनाएं।

लघु कृति

*कालभैरवाष्टकम्*